UP Rozgar Mission:-
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में रोजगार मिशन के गठन का फैसला लिया है। इस मिशन के गठन के बाद हर साल 1.30 लाख युवाओं को रोजगार मिलेगा। जिसमें से एक लाख युवाओं को अपने देश में रोजगार मिलेगा और 30 हजार को विदेश में रोजगार दिलाया जाएगा। उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि मिशन रोजगार के गठन के साथ देश और विदेश दोनों स्तर पर अपने युवाओं को सीधी नौकरी दिलाई जाएगी। विदेश में रोजगार के लिए राज्य को एजेंट और लाइसेंस धारी एजेंसी पर निर्भर रहना पड़ता था। रोजगार मिशन बनने के बाद सरकार खुद और RA लाइसेंस हासिल कर सकेगी जिससे बेरोजगारों को सीधे विदेश में रोजगार के लिए भेजा जा सकेगा।
शिक्षक भर्ती के लिए आयोग तैयार लेकिन शिक्षा विभाग से नहीं मिल रहा सहयोग:-
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) और उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग शिक्षक भर्ती के लिए तैयार हैं, लेकिन माध्यमिक शिक्षा विभाग से दोनों आयोगों को सहयोग न मिलने के कारण 33 हजार से अधिक पदों पर भर्तियां फंसी हुई हैं।उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग को राजकीय माध्यमिक विद्यालयों और उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग को अशासकीय माध्यमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक व प्रवक्ता के पदों पर भर्ती करनी है।
यूपीपीएससी को भर्ती के लिए जहां आधा-अधूरा अधियाचन मिला है, वहीं शिक्षा सेवा चयन आयोग को कोई अधियाचन ही नहीं मिला है। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने तीन माह पहले माध्यमिक शिक्षा विभाग को पूर्व में भेजा गया अधियाचन वापस कर दिया था और कहा था कि विषयवार आरक्षण का निर्धारण करने के बाद अधियाचन दोबारा भेजा जाए। माध्यमिक शिक्षा विभाग ने यूपीपीएससी को प्रवक्ता व एलटी ग्रेड के 9017 पदों का अधियाचन भेजा है, लेकिन तकनीकी अड़चन के कारण भर्ती फंसी हुई है।
सात साल से एलटी ग्रेड शिक्षक भर्ती का इंतजार:-
अभ्यर्थियों को राजकीय विद्यालयों में एलटी ग्रेड शिक्षक (सहायक अध्यापक) भर्ती का सात साल और प्रवक्ता भर्ती का पांच साल से इंतजार है। एलटी ग्रेड शिक्षक के 10,768 पदों
पर भर्ती के लिए पिछला विज्ञापन मार्च 2018 में
जारी किया गया था। इसके बाद कोई नई भर्ती नहीं आई। वहीं, प्रवक्ता के पदों पर पिछली भर्ती वर्ष 2020 में
आई थी।
एक शिक्षक के सहारे यूपी के हजारों स्कूल:-
उत्तर प्रदेश के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति आज इस कदर बदहाल हो गई है कि हजारों स्कूल केवल एकमात्र शिक्षक के सहारे ही संचालित हो रहे हैं। यह स्थिति न केवल शिक्षा व्यवस्था की कमजोर बुनियाद को उजागर करती है, बल्कि बच्चों के भविष्य को भी गहरे संकट में डाल रही है। राज्य के कई जिलों में ऐसे विद्यालय मौजूद हैं जहाँ एक ही शिक्षक को प्रधानाध्यापक की जिम्मेदारी के साथ-साथ सभी कक्षाओं को पढ़ाने का भी कार्यभार उठाना पड़ता है।
वह शिक्षक सुबह स्कूल खोलता है, झाड़ू लगाता है, बच्चों की हाजिरी लेता है, मिड-डे मील की व्यवस्था देखता है और फिर अकेले ही कक्षा 1 से 5 या 8 तक की पढ़ाई करवाने का प्रयास करता है।यह स्थिति उस समय और भी चिंताजनक हो जाती है जब शिक्षक को प्रशिक्षण या चुनावी ड्यूटी के लिए बाहर भेज दिया जाता है, तब स्कूल कई दिनों तक बिना पढ़ाई के बंद ही पड़े रहते हैं।यह न केवल शिक्षा के स्तर को प्रभावित करता है, बल्कि सरकारी योजनाओं की साख को भी कम करता है। एक शिक्षक पर इतनी सारी जिम्मेदारियाँ थोपना न केवल उसके पेशेवर जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी गहरा असर डालता है।
कई बार ऐसे शिक्षकों को अभिभावकों की नाराजगी और अधिकारियों की लापरवाही दोनों का सामना करना पड़ता है। सरकार की तरफ से शिक्षकों की नियुक्ति की गति धीमी है, वहीं ट्रांसफर नीति में पारदर्शिता की कमी और राजनैतिक हस्तक्षेप की वजह से योग्य शिक्षक भी उचित स्थानों पर नहीं पहुँच पाते। इसका सीधा खामियाजा ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों के विद्यार्थियों को भुगतना पड़ता है।
इसलिए आवश्यक है कि उत्तर प्रदेश सरकार स्कूलों में शिक्षकों की तैनाती पर विशेष ध्यान दे, स्थानांतरण एवं नियुक्ति प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाए और एकल शिक्षक विद्यालयों को शीघ्र बहु-शिक्षक विद्यालयों में परिवर्तित करे। तभी जाकर हम "सब पढ़ें, सब बढ़ें" के नारे को वास्तविकता में बदल पाएंगे और ग्रामीण भारत की शिक्षा को सशक्त बना सकेंगे।
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